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हमने सीधी सरल आम-सी राह चुनी / विनोद तिवारी

 हमने सीधी सरल आम-सी राह चुनी
 सड़कों से जीवन की गाथा रोज़ सुनी

 वे भी हुए शिकार पतन के विचलन के
 माटी के पुतले ही निकले ऋषि-मुनी

 मन कपास था रेशा-रेशा बिखर गया
 यार वक़्त के पिंजारे ने ख़ूब धुनी

 सागर की लहरें अनंत थीं इच्छाएँ
 दो की दुगनी चार, चार से आठ गुनी

 साँसों का करघा बुनकर हम कुशल नहीं
 जीवन की चादर झीनी ही जाए बुनी