भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमरऽ दिन की एहने रहतै! / कैलाश झा ‘किंकर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमहूँ बनबै कहियो टीचर
भलें आय कहि दहो फटीचर
बैठले-बैठले पैबै रूपा
इस्कूल जैबै बुध-शनीचर

हमरऽ जादू एहनऽ चलतै
कि राष्ट्रपति के सम्मानों मिलतै!
हमरऽ दिन की एहने रहतै!

नै तेॅ बनबै राष्ट्रीय नेता
अजगर, गेहूँमन आरो करैता
जलो नै माँगतै डसबै जेकरा
दौड़ले-दौड़ले ऊपर जैता

जन्नेॅ चाहबै देश घूमैबै
मिनटऽ में सरकारे गिरतै!
हमरऽ दिन की एहने रहतै!

नै तेॅ बनबै हम व्यापारी
करबै हम कालाबाजारी
बड़का डीलर बनी केॅ हमहूँ
माल हजम करबै सरकारी

देखतें रइहऽ आँख फाड़ि के
रूपा घर में रोज बरसतै!
हमरऽ दिन की एहने रहतै!

नै तेॅ छियै हमहूँ बिगड़ल
बनबे करबै बड़का क्रिमनल
हमरा नाम सँ काँपतै सभ्भे
परशासन भी रहतै छिटकल

लूट-पाट अपहरणऽ करबै
लाख करोड़ त ऐबे करतै!
हमरऽ दिन की एहने रहतै!