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हमरा कैन्हे देखेलै नै / अनिल कुमार झा

सभैं कहलकै वसंत ऐलै हमरा कैन्हें देखेलै नै,
आमो बगिच्चा में कोयली बोललै हमरा कैन्हें बोलैलकै नै।

मंजर महकी महकी उठलै
हवा मस्त होय झूमै छै,
कखनू जाय पत्ती सहलावै
कखनू कली के चूमै छै।
फूल फूल पर भौंरा गेलै हमरा कैन्हें देखेलै नै,
सभैं कहै वसंत ऐलै हमरा कैन्हें देखेलै नै।

वहाँ डिगरिया जरी जरी के
लाल ज्वाल जे फूकै छै,
दूर बटोही अजय किनारा
चुप चुप देखै, चूकै छै।
आगिन नै ई टेसू छेलै हमरा कैन्हें बनैलै नै,
सभैं कहै वसंत ऐले हमरा कैन्हें देखैलै नै।

रंग बिरंगा पंख पसारी
तितली फिरी फिरी गेलै,
मस्त मगन मतवाली
आवी कानों में बोलै
यहाँ नशा तेॅ वसंत छेलै हमरा कैन्हें सुहैलै नै,
सभै कहै वसंत ऐलै हमरा कैन्हे देखेलै नै।