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हमरा जीवन बीना / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
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हमरा जीवन-वीण के अझुरइल दू गो तर
एगो पातर एगो मोटा दू किसिम के तार
एही से ना जीवन वीणा सही सुर से बाजे पावे
एही से ना जीवन वीणा मधुर सुर सुनावे पावे
एही बेसुरा विषम स्वर से व्यथित हमर प्राण
एहीं से त जब-न-तब रुकेल हमर गन
तहरा सभा में जाये से लागेला हमरा लाज
ई व्यथा हमरा से सहल ना जाय आज।
तहरा सभा में गुणी लोग का लगे
बइठे लायक योग्यता हमरा में बा कहाँ?
बाहरी दरवजे पर रहिले ठाढ़
काहे कि बाजे ना पावे सम स्वर से
हमरा जीवन वीणा के तार।