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हमरा दुखोॅ के बात जानतै हुनी जे कहीं / अनिल शंकर झा
Kavita Kosh से
हमरा दुखोॅ के बात जानतै हुनी जे कहीं
रात दिन चिन्ता में एक करी मारतै।
हमरा लेली हो दैव हुनकोॅ हरख जैतै
जिनगी में यही दुख रातें-दिनें सालतै।
सब सें छिपाय मोॅन मारी सब सहै छी तेॅ
की ठेकानोॅ कहीं रोग बढ़ी राज खोलतै।
हमरा सें राज राखी बनलोॅ छोॅ राजदार
दुखी मोॅन रहीं-रही यही तान मारतै॥