हमरा नैनन के भुलववनी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
हमरा नैनन के
भुलववनी,
आँखन के छले वाली
शरत सुंदरी आ गइली।
फूलन से लदरल
पारिजात गाछन के
अगल-बगल में
एने-ओने
चारू ओर
झरल-छितराइल
फूलन के ढेरी पर
शीत से भींजल
नरम-नरम घासन पर
लाल-लाल रंगल-रंगल
चरन धरत, चलत-बढ़त
नैनन के छलेवाली
शरत सुंदरी आ गइली।
हे शरत-सुंदरी
तहार धूप छाँही आँचर
वन-जंगल में
पसरल गइल।
वनफूल सब
तहरा सुंदर मुखरा कोरी
ताक-ताक,
तहरा अपरूप रूप के
देख-देख
ना जानीं जे मने-मने
का कह रहल बा
का सोच रहल बा?
अब अपना
मुँह पर से घूँघट
उतार फेंकऽ हे भरत-सुंदरी
अपना सुंदर मुखरा पर
छितराइल मेंघन के जाल
अपना दूनों हाथे
हटा द, फेंक द।
वनदेवी का दुआरे-दुआर
शंख बाज रहल बा
आकाशवीणा के तार-तार पर
तहार स्वागत गान
हो रहल बा,
सोना के नूपुर
कहाँ बाज रहल बा?
बुझाता, जइसे
हमरे हृदय मंे बाज रहल बा।
हमरा हर भाव में
हमरा हर चाव में
आपन दिव्य सुधा
आपन आनंदामृत
उड़ेलत,
हमरा नैनन के
भुलवावे वाली
हमरा आँखन के
छले वाली
शरत-सुंदरी आ गइली।