हमरा नै धोॅन चाही सेठ साहूकार केनें
बोॅल चाही नागराज हाथ में उठाय केॅ।
हमरा नें रूप चाही काम के लुभाय के नै
बनी नृपराज कहीं हुकुम जताय के।
हमरौं नै नाम हुबेॅ अग-जग पार आरो
हमना नै ज्ञान चाही मुनि केॅ लुभाय के।
जबतक रहौ काव्य सरिता में बहौ
रस रसें रसें पियौ सुध-बुध बिसराय के॥