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हमरा मन आ काया के जे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
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हमरा मन आ काया के जे करिया छाया बा
ओके हम जड़ से मिटा देवे के चाहतानीं।
चाहतानीं कि ओके आग में जरा दीं
भा समुन्दर का तल में डुबा दीं।
भा गलाऽ के तहरा चरनन पर चढ़ा दीं।
छाया के जे माया बा ओके दरकच दीं।
हम जहाँ जाइले तहाँ एह छाया के
आसन डटा के बइठल देखिले।
लाजे हमार मरन हो जाला
हे हरि, हरन कर ल एह छाया के।
हमरा एह भाव में कबहूँ कमी ना आई
छाया के माया मिटवले पर
तहार पूर्ण दरसन हो पाई।