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हमरा से मिले खातिर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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हमरा से मिले खातिर
ना जानीं जे कब से,
कवना अनादि काल से
तूं आ रहल बाड़ऽ?
तहार चान सुरूज
तहरा के भला
कहाँ ढाँप के राखी लो?
हमरा आँख से
तू कहियो ओट ना भइलऽ
कहियो ओझल ना भइलऽ
ना जानीं जे
कतना साँझ-सबेरे
तहरा चरनन के आहट
हमरा मिलल।
ना जानीं जे
तहार कवन गुप्त दूत
हमरा हृदय में
पुकार-पुकर के
तहरा नेवता कहेला?
आरे भाई राही,
ना जानीं जे आज
हमरा प्राण का पोर-पोर मेभें
अतना पुलक काहे समाइल बा?
आज हमरा हृदय में
रह-रहके
हरख के हिलोरा से
आनंद के कँपकँपी उठ रहल बा।
जाए के बेरा हो गइल का?
आज जाय के समय पहुँच गइल?
जवना काम खातिर
हम इहाँ भेजाइल रहीं
से हो गइल पूरा का?
आज हमार
सब कर्तव्य सकर गइल?
हे महाराज
हवा जे आ रहल बा
तवना में, तहार गंध भरल बा।
बूझाता जे तूं
हमरा कही निकचे बाड़ऽ।