भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमरोँ लोगे तेँ यहाँ सब्भे केॅ पारी देलकै / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
हमरोँ लोगे तेँ यहाँ सब्भे केॅ पारी देलकै
एक्को ठौ नेता कहाँ ककरो लगारी देलकै
हुनका मालूम छेलै हुनकोॅ फूल नै फरतै
हूनी आबी केॅ हमरोॅ लोॅत मोचारी देलकै
ओकरोॅ तकदीर में बेलपाते, फूल लिखलोॅ छै
ककरो लुग जौनें कि अँचरा केॅ पसारी देलकै
हूनी चाहै छै आबेॅ मूड़ी पर चलै वास्तें
लोगे स्वागत में जे हाथोॅ केॅ पसारी देलकै
ककरौ फुर्सत छै कहाँ आबी केॅ बुलाबै के
राह में आबी गेलै यैलेॅ पुकारी देलकै
अपनोॅ भागोॅ केरोॅ रेखा केॅ बीछी बीछी वें
अपनोॅ दुश्मन केरोॅ किस्मत केॅ सँवारी देलकै
नै तेॅ ठहरै के बेवस्था नै खाय पीयै के
ई तेॅ अमरेने छेलै जिनगी गुजारी देलकै
-14.4.92