भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमरोॅ आजादी / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'
Kavita Kosh से
खुल्लम-खुल्ला ई आजादी
अपनऽ रूप संवारै छै
जेकरा चाहै जन्नें चाहै
मौत के घाट उतारै छै।
केकरो साया, केकरो चोली
केकरो देह उघारै छै
बलात्कार-अपहरण के आगू
के-के कहाँ नकारै छै।
ई घुसखोरी सर पर नाची
उलटे टांग पसारै छै
थुक्कम-फजीहत, उटक-पैंची
के नाय यहाँ सकारै छै।
डेगे-डेगे बाँटे-बखरा
छौंकी बात बघारै छै
नून-तेल हरदियो मसाला
रगड़ी सर हंकारै छै।
जन्नेॅ देखऽ, जन्नेॅ चाहऽ
सगठॅ आय ललकारे छै
केकरा कौनें ई आफत सें
कौने कहाँ उबारै छै।