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हमरोॅ गाँव / विजय कुमार

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स्वर्ग की होतै सुन्दर वहिनोॅ
जहिनोॅ हमरोॅ गाँव छै !
फूलें जहाँ सिखै फूलै लेॅ
कोयल नें कुहकै लेॅ
नदीं जहाँ धारा बदलै लेॅ
पपीहरां पिहकै लेॅ
ठाम्हें-ठाम झबरलोॅ गाछी के
मनबढ़ ुवोॅ छाँव छै
खेत हँसै छै जहाँ धान के
गहुमोॅ के बाली में
जहाँ खिलै छै गोटोॅ
गोरी-गालोॅ के लाली में
दिनभर वहियारोॅ में जोगै
खुद भूमि बाबा नें
दुर्लभ जेकरोॅ रूप विराजै
काशी में, काबा में
ओकर्हौ रोज हँसावै जेकरोॅ
नै काँहूँ भी ठाँव छै !