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हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-01 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

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एक अंग्रेजी के बीजेॅ
कत्ते रे बीज उगावै छै,
काल्हो हम्मेॅ कानै छेलियै
आझो रोज कनावै छै ।।1।।

वहेॅ अंग्रेजी लूटपाट के
आझो दृश्य देखावै छै
नून-तेल हरदियो मसाला
अंग्रेजे रंग लगावै छै ।।2।।

रहै कहियो भारत के माटी
सोना खूब उगावै
राम-कृष्ण-गौतम-गाँधी
गंगा ज्ञान बहावै ।।3।।

आबेॅ कैहनेॅ वहेॅ माटी
सकटें भेद उपजावै छै
सोना ऊपर धरी सुहागा
आँच्हैं रोज जरावै छै ।।4।।

मुँह के रोटी लै भागै
भुखेॅं भूख तड़पावै छै
सगठे देखोॅ उछली-कूदी
नर-संहार करावै छै ।।5।।

चुप्पी साधी देव आराधै
मछली रोज फँसावै छै
जाप करै या मंतर फूकै
सबके लाल लड़ावै छै ।।6।।

घेरा डालै खोन्हे-खोन्हा
चिड़िया घोॅर उजाड़ै छै
खोरी-खोरी जन्नेॅ-तन्नेॅ
केकरोॅ घर नै जारै छै ।।7।।

बंजर माटी काँटे - कूशोॅ
बीजे रोज उगावै छै
वैर-भाव फरै हर डारी
तीखे स्वाद बढ़ावै छै ।।8।।