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हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-02 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

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झुठ्ठे करै रे साँच चबेना
चुटकी धुरा उड़ावै छै
ताल ठोकै आरु ललकारै
बात्हैं दरार बढ़ावै छै ।।9।।

जे आजादी के छाहीं मेॅ
रहै खुशी के सपना
टुटिये-टूटी लगै बिखरलै
भेलै चकना-चकना ।।10।।

मरलै-कटलै, फाँसी चढ़लै
छेलै जे वीर सेनानी रे
वें देखै छै केकर्हौ देहें
नै छै पानी-पानी रे ।11।।

जेकरोॅ जौहर के आगू
टिकलै कि भला फिरंगी
कैहने आय ई वेश बदललै
चाल चलै दूरंगी रे ।।12।।

दुर्गा-काली रणचंडी
के झाँसी रूप निहारै
रणभूमि मेॅ केकरा नै
मौतोॅ के घाट उतारै ।।13।।

आय सामने अरिदल कत्तेॅ
रोज-रोज ललकारै छै
धमकी दै-दै देखे कैहनेॅ
शाने रोज बघारै छै ।।14।।

दुश्मन आगू ठेहुना टेकोॅ
मौत के घाट उतारोॅनी
आबोॅ खेलोॅ मौत के होली
पकड़ी गला उतारोॅनी ।।15।।

कल्हो हम्मेॅ जेना तड़पलाँ
आझो कोय तड़पाबै छै
भले आजादी खुशी मनावै
चाल वहेॅ दोहराबै छै ।।16।।