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हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-03 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

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जात-पात, उच्चोॅ-नीचोॅ के
आझो माथ्हैं सेहरा रे
आँखी के चश्मा सेॅं देखोॅ
अलगे सबके चेहरा रे ।।17।।

कुर्सी लोभें ई संन्यासी
किरिया रोजे धरावै छै
मालिक घोटै रोज खजाना
झूट्ठे मुँह बिदारै छै ।।18।।

तिलक-छाप दुर्गा-काली के
भितरे जाल् बिछावै छै
परजीवी के धंधा देखोॅ
चुसिये मौज मनावै छै ।।19।।

मुरदा पर छै छीना-झपटी
कुट्टी-कुट्टी बाँटै छै
मांसे ढेरी भोग लगावै
दोसरा केॅ ई डाँटै छै ।।20।।

धन्य भाग ई लूट तंत्र
साल्है गाँठ मनावै छै
हड्डी के ढेरी पर बैठी
सबके ई ललचावै छै ।।21।।

गीतो मंगल गाला-गाली
तू-तू मै के गावै छै
एक दोसरें करै उघारोॅ
अपन्हैं मौज मनावै छै ।।22।।

जादू-मंतर फूँक मारिये
सबके भेंड बनावै छै
झाड़ी-फूकी भूत भगावै
प्रजातंत्र कहलावै छै ।।23।।

रानी कुर्सी रूप सँवारै
केकरा नै ललचावै छै
स्वर्ण सुन्दरी खातिर के नै
आपनोॅ शीश झुकावै छै ।।24।।