हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-04 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’
उहो मोहनी सूरत देखी
कै नै लार चुआबै छै
हार-जीत के पलड़ा पर वें
बुनियाँ खूब झड़ावै छै ।।25।।
टूटै-फूटै हंडिया वर्त्तन
चौक्है दोष लगावै छै
घाट सभै के एक्के लागै
जित्ते दोष लगावै छै ।।26।।
ई सुनरी के पाछू देखौ
सभे दिनोॅ के खिस्सा
जे जैहनोॅ संघर्ष करै छै
वैहने पावै हिस्सा ।।27।।
ऊ आजादी सपना झूलै
अपन्है खुशी मानवै छै
चाहे केकरो चूल्हे भसकै
अपने महल बनावै छै ।।28।।
राशन पर भाषण अजमावै
टुटले साज बजावै छै
लुटिये लूटी माल खजाना
अपन्हैं जशन मनावै छै ।।29।।
नशे-नशे छै धोखे-धोखा
मन्हैं-मन जाल बिछावै छै
टेंगरा-पोठिया, गर्रै गैंची
अपने जाल फँसावै छै ।।30।।
चोरी कारण रावण के घर
ऐलै कत्तेॅ जारन
लंका मेॅं जे आग सुलगलै
लगलै सीता कारण ।।31।।
रबना के पुतला जारी केॅ
की आदर्श देखावै छै
रोजे होय सिया के चोरी
के केकरोॅ घर जारै छै ।।32।।