हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-05 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’
सभे दिनोॅ के पक्षपात रे
अपनोॅ जानी आवै छै
रोजे खींचै चीर दुःशासन
केकरो चीर बढ़ावै छै? ।।33।।
कुरुक्षेत्र मेॅ देखोॅ जौनें
गीता ज्ञान पढ़ैलकै
आय कैन्हें, कहाँ वैं जानेॅ
अचर्हैं मुँहा नुकैलकै ।।34।।
मंदिर सेॅ भगवान के चोरी
हुनी की रक्षा करतै
जेकरा आँखी आग जरै रे
हौ कैन्हेॅ रे डरतै? ।।35।।
चोरी के आगू रे देखोॅ
के नै लोहा मानै छै
डर के मारे चुप्पी साधी
थुक्कें सतुवा सानै छै ।।36।।
अल्ला मस्जिद त्याग करलकै
मंदिर से भी राम
लागै छै ई सब झगड़ा सेॅ
नै दोन्हौ के काम ।।37।।
शंख डराबै छै मंदिर के
मस्जिद के इस्पीकर
लगै छे दोनों होइये गेलै
बैहरोॅ भीतरे-भीतर ।।38।।
कोय मस्जिद कोय मंदिर तोड़ै
दोनों छै बेजान
जे कटियो-टा शोध करै नै
ऊ कैहनोॅ भगवान! ।।39।।
तिलक छाप चंद के छापै
रोज करै घुसखोरी
गला मेॅ शोभे मोहन माला
घोॅर ढूकै बलजोरी ।।40।।