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हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-06 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

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चक्र-सुदर्शन पंगू लागै
तिरशुल लागै भारी
चोरोॅ के मनबढ़लोॅ देखी
देवो छै झखमारी ।।41।।

देवता अपनोॅ घरहैं सुतलै
राक्षस खुशी मनावै छै
सोचै छै ‘मथुरा’ मनमारी
के रे कहाँ उबारै छै ।।42।।

अपनोॅ-अपनोॅ ई खेमा मेॅ
अपन्है धुरो उड़ावै छै
कोइये यहाँ नजर नै आवै
जे रगड़ फरियाबै छै ।।43।।

झटपट करोॅ नै मुँहें खोलेॅ
देखोॅ ई बँटवारा
दोनों घर मेॅ आग सुलगलै
खूनोॅ के पखवारा ।।44।।

ई विकास बुद्धिजीवी के
की रंग आय देखावै छै
के नकली के असली लागै
बात समझ नै आवै छै ।।45।।

लाज-शरम नै केकर्हौ देहिं
सबके-सब बे-शरमी
उटका-पैंची आयकोॅ धंधा
कहतै केरे कुकर्मी ।।46।।

शिक्षा-दीक्षा के लेखा की
मुरखो लड़ै इलेक्शन
लाठी बल्लें बकसा लूटै
होकरे करै सलेक्शन ।।47।।

धन्य भाग ई प्रजातंत्र के
के रोकै घुसखोरी रे
गारा-गारी, थुक्कम-थुक्की
आयकोॅ ई बलजोरी रे ।।48।।