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हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-08 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

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संसद छीटै लुटै विधायक
करै छै रिस्तेदारी
जेकरोॅ पहुँच छै रे लुल्हुआ तक
होकरे पलड़ा भारी ।।57।।

बरदीधारी मौन आराधै
देखै गुंडागर्दी रे
जेकरा जरा जे रस्सी बाँधै
छूटै नेता मरजी रे ।। 58।।

ई मनमानी के आगू
बूक फूलावै फरजी रे
जे जहाँ, जहाँ रे अटकै
फरकै अरजी-अरजी रे ।।59।।

कोय अदालत बंधन बाँधै
कोइय्ये झट जे तोड़ै रे
ई कैन्होॅ रे न्याय पनपलै
हाकिम के मँुह मोड़ै रे ।।60।।

केकर्हौ देहें कादोॅ-कादोॅ
केकरहौ चंदन तरसै रे
जेकरोॅ घटलै मान-प्रतिष्ठा
ऊ तेॅ भितरहै्ं बरसै रे ।।61।।

मँुहदेखी केॅ ई चक्की मेॅ
कहियो की साँच पनपतै
जौनी चुल्हा पानिये-पानी
ऊ कि आँच सुलगतै ।।62।।

लागै एन्हे कोट-कचहरी
के कानून दुनजोॅ
कैन्हेॅ नी कोय हुकरी मरतै
देखत्हैं ई कनगोजरोॅ ।।63।।

उछलै-कूदै अच्छत बाँटै
उतरै दुर्गा - काली
सबके दुःख मिटावै छन मेॅ
के लौटे घर खाली? ।।64।।