हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-11 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’
पतरा देखी लगन बिचारै
काम करै शुभ बेला
मौत भला रे केकरा छोड़ै
गुरु रहै कि चेला! ।।81।।
झूठे बोलै साँच आराधै
के रे शुभ फल पावै
सबघट अंदर राम बसै रे
चंदन कहाँ लगावै? ।।82।।
रामे छेलै राम के भैया
राम्हैं भेद बढ़ावै रे
जौनी रामे रामे समझै
राम-राम फल खावै रे ।।83।।
छल के फल नै राम चढ़ावोॅ
रामोॅ के राम बतावोॅ नी
रामो के नित राम बनाय केॅ
भितरी द्वेष मिटाबोॅनी ।।84।।
दिन दहाड़े माथोॅ काटै
जानवर देखै खेला
राम-कृष्ण केई धरती पर
यहेॅ धिनैले मेला ।।85।।
के केकरा रे कन्नेॅ ठगतै
कन्नेॅ करतै घात
लहू-लूहाने उगलोॅ आवै
अयकोॅ ई परभात! ।।86।।
चाहे केकर्हौ दाढ़ी
काँटोॅ कूशोॅ सेॅ भरलोॅ छै
केकरोॅ नै बाड़ी-झाड़ी? ।।87।।
रामें करै राम सेॅ चोरी
राम्है छीना-झपटी
केरे अल्ला भेद चढ़ावै
काटै झपटी-झपटी! ।।88।।