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हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-12 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

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महारुद्र के यज्ञ करै जे
विश्वशांति के हेतु
कैन्हेॅ नी कोइये बाँधै छै
विश्व बन्धु के सेतु! ।।89।।

घरे-घर छै झगड़े-झगड़ा
लम्पट, चोर, चोहाड़
रोजे तोड़ै अड्डे-गड्डा
सकठे खाँड़े-खाँड़ ।।90।।

मंतर पढ़िये होम करै जे
कत्ते घी के स्वाहा
रंग-रंग के भेद रचै छै
कवित्, छंद आरो दोहा ।।91।।

तब्बो कैहने नी देशेोॅ सेॅ
द्वेष मिटै नै झगड़ा
सकठे छै चिड़िया के कचकच
घिकवा, मत्थन, रगड़ा ।।92।।

रोजे करै जे जाप मृत्यंुजय
वहो तेॅ जाय छै मरिये
पैसा-कौड़ी, दान-दक्षिणा
लै छै पीठी धरिये ।।93।।

बैठले-बैठलोॅ पढ़ै छै मंतर
तारै छै कुल पीतर
मंतर पढ़ी स्वर्ग पहुचावै
ई बटेर आरु तीतर ।।94।।

गोली बारूद, मार-काट के
कहिया बनतै बेदी
कहिया छुटतै भजहा-खुजली
आरो जेलोॅ सेॅ कैदी ।।95।।

चारो दिश छै खसरा आफत
दम्मा-खाँसी-लफड़ा
हड्डी-हड्डी, मासे-मासे
बाँटै बखरे-बखरा! ।।96।।