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हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-14 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

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भूल-भुलैया के ई खेला
कहिया रे कब्बो टिकलै
भल्हैं कुच्छु दिनोॅ खातिर
हरिश्चंद्र भी बिकलै ।।105।।

ई परीक्षा सच के खातिर
सब दिन होत्हैं ऐलोॅ छै
झूठ भले होवै बलशाली
सब दिन कि ऊ टिकलक छै ।।106।।

झूठ करोॅ नै अभियो चेतोॅ
कत्तेॅ आँच लगैभेॅ
सगरो भेलै धँुइय्याँ
आबेॅ की आग जरैभेॅ ।।107।।

झूठोॅ के धंधा ई छोड़ोॅ
कत्तेॅ फंेकभेॅ फंदा रे
उजरोॅ देहें धूरा डाली
कत्तेॅ करभेॅ गंदा रे ।।108।।

सच के ऊपर धरती टिकलोॅ
सूरज चाँद-सितारा
अबकी मिललोॅ ई धरती पर
मिलभेॅ की दूवारा ।।109।।

आबोॅ आपनोॅ हाथ बढ़ाबोॅ
की केकरा लाचारी
हँसी खुसी सेॅ सबआ बाँटोॅ
जेकरा जे बीमारी ।।110।।