भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमरोॅ देशः गुजरलोॅ वेश, खण्ड-15 / मथुरा नाथ सिंह ‘रानीपुरी’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झूठ-मूठ के धंधा छोड़ोॅ
स्वाद जीहोॅ के मोड़ोॅ
जे जहाँ हिल्लोॅ-डोललोॅ छै
नट-भोल्टू सेॅ जोड़ोॅ ।।111।।

राम-राज बापू के सपना
यहें रहै जुड़ैल देखना है
आबै है जे पीढ़ी देखथौं
तोरे गत्त पुरैलोॅ ।।112।।

जेकरोॅ घोॅर जहाँ फूटै छै
के नै केकरा लूटै छै
वे आदर-सम्मान भलाकी
कौनें केकरा पूछै छै? ।।113।।

दूध-दही के सपना छोड़ोॅ
प्रेम के नदी बहावोॅ नी
उछली-कूदी, डुबकी मारी
मन के मैल छोड़ावोॅनी ।।114।।

पूजा-पाठ यहेॅ दुनियाँ मेॅ
सबके गला लगाबोॅनी
मिलोॅजुलोॅ, खुशी मनाबोॅ
प्रेम-प्रसून खिलाबोॅनी ।।115।।

रहै नै कोना, नै कोय कातर
माथाँ बाँधोॅ नै सेहरा
अड्डा-गड्डा तोड़ोॅ क्यारी
सबके झलकै चेहरा ।।116।।