हमरोॅ परिचय / जटाधर दुबे
हम्में तेॅ संसार-रुपी गाछी के
एक अनजान फूल ऐन्होॅ छियै,
जे गाछी में
अनगिनत काँटोॅ जड़लोॅ छै,
आँधी-तूफान चाहेॅ कतनोॅ आवेॅ,
वही बीचोॅ में बढ़ना छै, खिलना छै।
कखनियोॅ धोखा, छल आरो कपट
रोॅ पŸाा घेरबै करतै,
कखनियोॅ ईर्ष्या सें भरलोॅ काँटोॅ सिनी
देहोॅ में घुसी केॅ
रस्ता रोकै केॅ कोशिश करतै,
डरना नै छै, बढ़तें रहना छै,
खिलतेॅ रहना छै।
कारोॅ-कारोॅ मेघोॅ रोॅ अन्धकारें
मारै लेॅ चाहतै,
अंधड़-तूफानें तोड़ी केॅ फेंकै लेॅ चाहतै,
कखनियों लतड़ें भी मोहपाश में जकड़ी केॅ,
फूलोॅ के खिलबोॅ रोकै लेॅ चाहतै,
मगर हमरा बढ़तेॅ रहना छै।
बनी केॅ झरना बहतेॅ रहना छै॥
गाछी केॅ पŸाा कोनोॅ मुस्कावै,
कोनोॅ-कोनोॅ पŸाा तेॅ गरियावै,
केकरोॅ तेॅ हमरा सेॅ यारी छै,
केकरोॅ तेॅ हमरा सेॅ रारी छै।
सुख-दुःख तेॅ जीवन केॅ साथी छै,
बाधा आरो उत्साह भरेॅ,
गाछी केॅ फुलंगी तक जाना छै,
हर डाली पŸाा जयगान करेॅ।
सूरज नया, सबेरा हर दिन,
नया-नया जे गीत सुनावेॅ,
हरदम बढ़तेॅ रहना छै,
हरदम खिलतेॅ रहना छै।