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हमर कथा के / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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हमर कथा के कान दैत अछि

हमर कथा के कान दैत अछि
जे खोपड़ी छरबा न सकै’ छल
से सब आइ मकान दैत अछि।

लुरिगर सब भरि मोन उठौलक,
किछु खयलक, किछु भार पठौलक,
जे मकैक नेढ़ा तकैत छल
से सब ऊँच मचान दैत अछि।

छलै’ सुखायल जकरी भोँटी,
जे तकैत छल गूड़ा-रोटी
सेहो सब अपना कूकुरकेँ
जलखैमे पकमान दैत अछि।

जे भगवानक नाम न लै’ छल,
जे भगवा लय दाम न दै’ छल,
से मुर्दा लय कफन दान
मलमलसँ थानक दैत अछि।

पद-लोलुप सब लोक भेल अछि,
निस्सन जे छल, फोंक भेल अछि,
त्यागक मन्त्र सिखाबय अनका
आ अपने घुसकान दैत अछि।

धर्म-कर्मपर रोक भेल अछि,
नीक लोक सब जोंक भेल अछि,
भीतर सोनित चूसि रहल अछि
ऊपर-ऊपर प्रान दैत अछि।

छलै’ न जकरा घऽर घड़ारी,
से कहबै’ अछि आइ भँडारी,
जे परती तकने फिरैत छल
से अनका खरिहान दैत अछि।

ज्ञानक पोथा पढ़ि-पढ़ि बिसरल,
समय पाबि आगाँ दिस ससरल,
अनकर घेँट ततारय लय
से सब छूरीपर ‘शान’ दैत अछि।

सोझ लोह चुट्टा बनि गेल’ छि,
और होयत एखने की भेल’ छि,
जीवी तँऽ की की ने देखी
युग-चक्रे परमान देत अछि।

अन्न बिना संसार विकल अछि,
अपने कर्मक सब प्रतिफल अछि,
गुरू गूड़, चेला बनि चिन्नी
सव गिदरा गुड़कान दैत अछि।

विष्ठी लय देतखिष्ठी जकरा,
जोड़ा बड़द द्वारिपर तकरा,
घरक निकलुआ राजनीति-
सागरमे सब बुड़कान दैत अछि।

रचना काल 1948 ई.