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हमर कनही कोशी / कालीकान्त झा ‘बूच’

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कोशीक कात छल,
वरखा वसात छल!
भादवक मास धार
ठाढ़ उमरल छल
हाहि मारि मारि
घ'र गाम केँ उजाड़ि
सभ ठाम केँ संहारलि
"हमर कोशी कनही "
पथारक पथार
लागि लाशक कतार
ताहि सँ दू नेही
ओझरायल झौआ मे
सुन्नर -सुन्नर परम सिनेही
एक नारी दोसर नर
कि उजड़ल आँचर लग
उपटल आँखि छल!!!