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हमर घर में अन्हार हे / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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सगर ढोल बजल दुल्हा सजल
बराती चलल नर्तकी के गजल
मगर हमर घर में दिने में अन्हार हे
बेटी के डोली कहाँ उठैलक कहार हे
कत्ते जुत्ता घिसल हरदी धैल रहल पिसल
अब की पूछाहा कुशल, बेटी घर रहल घुसल
लड़का बला के खूब जमल बेपार हे
हमर बेटी के नाव बिच धार हे

पहाड़ सन अषाढ कत्ते जगह हे बाढ़
कभी सूखा कभी दहाड़, हमर विपत हो गाढ़
कुमारी कन्या के माय जार-बेजार हे
बेटी के बाप ई धरती पर लाचार हे

न घिढारी होल न बजल ढोल
न गीत के बोल सभे कुछ हे गण्डगोल
लड़का लाख में मिले हे कहाँ अब पहाड़ हे
लड़की गियारी के फंदा हे भार हे

खूब लिखल पढ़ल, मुरूत सन गढ़ल
उमर पर चढ़ल, सिलाय फराय में बढ़ल
बेटा ओकर हंड़िया सन कार हे
तैयो हमर गरदन पर लटकल तलवार हे

लगन बीत गेल, कत्ते लड़का जीत गेल
धैल रहल हरदी तेल, माँग लाल नय भेल
मँड़वा के बाँस उखड़ गेल धिया कुमार हे
सच कहोही हमर घर में दिने में अन्हार हे।