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हमर जिनगी / कालीकान्त झा ‘बूच’

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बिनु घनश्यामक बेकार हमर जिनगी
धिक- धिक जुआनी धिक्कार हमर जिनगी
मेवा सड़ि जाऊ, फऽल फूलो सभ उसरि जाउ
मधुवन जड़ि जाउ नन्द राजभवन पजड़ि जाउ
सूखल जमुनियाक धार हमर जिनगी,
धिक- धिक जुआनी धिक्कार हमर जिनगी...
भृकुटी पर क्रोध रहेॅ हृदय मे भरल सिनेह
मक्खन मन अर्पित अछि नोक- झोंक दही देह
ककरा सँ करतै तकरार हमर जिनगी,
धिक- धिक जुआनी धिक्कार हमर जिनगी...
चोटी मे कस्तूरी एड़ी केसर कुमकुम
मलि मलि कऽ बौसथि ओ, हम तॅ रूसलि गुमसुम
कतऽ एहेन पेतै दुलार हमर जिनगी,
धिक- धिक जुआनी धिक्कार हमर जिनगी...
आगि जकाॅ दागि रहल चंद्रमुखी केर उपाधि
सोना सन देह हमर भस्म करब जोगसाधि
प'ड़ल गोर्वधन पहाड़ हमर जिनगी,
धिक- धिक जुआनी धिक्कार हमर जिनगी...
भवसागर घाटपरक ज्ञानी घटवार कृष्ण
कर्मक पुरान नाव धर्मक पतवार कृष्ण
प्रेमी बिनु केॅ करतै पार हमर जिनगी,
धिक- धिक जुआनी धिक्कार हमर जिनगी...