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हमसफ़र कोई नहीं दूरी-ए-मंज़िल के सिवा(ग़ज़ल) / अली सरदार जाफ़री
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काम अब कोई है न आएगा बस इक दिल के सिवा
रास्ते बन्द हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा
बाइसे-रश्क<ref>जिसे देखकर प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न हो</ref> है तन्हारवी-ए-रहरावे-शौक़<ref> प्रेम के मार्ग के यात्री का अकेलापन</ref>
हमसफ़र कोई नहीं दूरी-ए-मंज़िल के सिवा
हमने दुनिया की हर इक शय से उठाया दिल को
लेकिन इक शोख़ के हंगाम-ए-महफ़िल के सिवा
तेग़े मुन्सिफ़ हो जहाँ, दारो-रसन<ref>सूली और फाँसी </ref> हों शायद
बेगुनाह कौन है इस शहर में क़ातिल के सिवा
जाने किस रंग से आयी है गुलिस्ताँ में बहार
कोई नग़मा ही नहीं शोरे-सलासिल के सिवा
शब्दार्थ
<references/>