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हमसफ़र न हो सारी ज़िंदगी अधूरी है / गिरधारी सिंह गहलोत
Kavita Kosh से
हमसफ़र न हो सारी ज़िंदगी अधूरी है
प्यार के बिना तेरी हर ख़ुशी अधूरी है।
आँख से पिलाया है पर सुरूर है बाकी
जाम अपने हाथों में तिश्नगी अधूरी है।
रहगुज़र पकडली है पुरख़तर मुहब्बत की
ख़ार से भरा रस्ता रौशनी अधूरी है।
गन्दगी भरा है दिल साफ पहने हैं कपड़ें
आजकल के नेता की सादगी अधूरी है।
लाख सज के निकलो तुम रूप की छटा लेकर
बिन ह्या के रुख पर ये चांदनी अधूरी है|
पार करना है मुश्किल , ज़िंदगी हो या दरिया
हौसला न दिल में हो , आस भी अधूरी है।
मंज़िले कभी कोई , हो सके न हासिल गर
आपके ही दिल में दीवानगी अधूरी है।
गीत हो तभी लेगा जन्म राग कोई भी
मौसिकी बिना सारी रागिनी अधूरी है।
ज़ाल लाख लफ्जों के बुन 'तुरंत' ले कोई
रूह के बिना सारी शायरी अधूरी है।