Last modified on 15 अप्रैल 2011, at 17:13

हमसे कसम हर बात पे खाई नही जाती / मोहम्मद इरशाद


हमसे कसम हर बात पे खाई नही जाती
लजों से आग दिल में लगाई नही जाती

पहले तो हर ख़ुशी में हम गाते थे झूम के
अब क्या हुआ वो रस्म निभाई नही जाती

गर ज़िस्म जख़्मी हो तो दिखाई दे वो सबको
हो रूह लहू-लहू तो दिखाई नहीं जाती

सब की ज़बाँ पे है यहाँ अपनी ही दास्ताँ
ये और बात है कि सुनाई नहीं जाती

अपने ही घर में जो हम दोनों को बाँट दे
ऐसी कोई दीवार उठाई नहीं जाती

‘इरशाद’ तेरी कोशिशें कुछ काम आ सके
नफरत की आग हम से बुझाई नहीं जाती