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हमसे खुल जाओ बवक़्ते-मैपरस्ती एक दिन / ग़ालिब

हम से खुल जाओ बवक़्ते-मैपरस्ती एक दिन
वरना हम छेड़ेंगे रख कर उ़ज़र-ए-मस्ती<ref>नशे का बहाना</ref> एक दिन

ग़र्रा-ए औज-ए बिना-ए आ़लम-ए इमकां न हो
इस बुलंदी के नसीबों में है पस्ती एक दिन

क़र्ज़ की पीते थे मै लेकिन समझते थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन

नग़मा-हाए-ग़म को भी ऐ दिल ग़नीमत जानिये
बे-सदा हो जाएगा यह साज़-ए-हस्ती एक दिन

धौल-धप्पा उस सरापा-नाज़ का शेवा<ref>आदत</ref> नहीं
हम ही कर बैठे थे ग़ालिब पेश-दस्ती<ref>हराने की कोशिश</ref> एक दिन

शब्दार्थ
<references/>