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हमसे मत पूछ, मुहब्बत में क्या पाया / तारा सिंह
Kavita Kosh से
हमसे मत पूछ, मुहब्बत में क्या पाया
फ़ुरकत की जलन1 मिट गई,मरने की दवा पाया
बची जान उसकी जालिम अदा से , जब
निगाहे-नाज2 को, सुरमे से ख़फ़ा पाया
आती है अपनी बेकसी-ए-इश्क3पर रोना,ख्वाबों से
लिपटी रहने वाली को, दिल से जुदा पाया
ये जन्नत मुबारक हो उसको, हमने तो
अपने ही हाथों, मरने की सजा पाया
जमीं बोझ बनी, या आसमां का बार4
जो हमने मुहब्बते–बार को न उठा पाया
1.जुदाई का दुख 2.सुंदर आँख 3. इश्क पे रोना 4.बोझ