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हमसे मौसम ने कहा हमने निकाली चादर / रामकुमार कृषक
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हमसे मौसम ने कहा हमने निकाली चादर
जिसमें पुरखों की बसी गन्ध सम्भाली चादर
दिन में पूरी थी मगर रात अधूरी - सी लगी
सिर पे खींची तो कभी पाँव पे डाली चादर
हमने ओढ़ी तो मगर हमसे बचाई न गई
यों ही कबिरा की कई बार खंगाली चादर
हमसे कुछ लोग कह रहे कि मजारों पे चलो
भर के लाएँगे चढ़ाएँगे जो ख़ाली चादर
कितने लोगों ने यहाँ यूँ भी सचाई को ढँका
देह ढँकने के लिए ओढ़ ली जाली चादर