भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमहूँ कहीं तूहूँ कह s / गुलरेज़ शहज़ाद
Kavita Kosh से
हमहूँ कहीं तूहूँ कह s
हमहूँ बहीं तूहूँ बह s
दुखवा सबके एके बाटे
हमहूँ सहीं तूहूँ सह s
सबके सपना बाँचल रहे
हमहूँ रहीं तूहूँ रह s
भइयारी के हाथ ना छूटे
हमहूँ गहीं तूहूँ गह s
मन से माहुरबह के निकले
हमहूँ महीं तूहूँ मह s
दम्भ अहम के टूटे कोठी
हमहूँ ढहीं तूहूँ ढह s