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हमारा इंकार / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
जहाँ वेदों और स्मृतियों की
भेड़ियाधसान है
जहाँ जात ही इंसान की
एकमात्र पहचान है
और ऊँची जात का
हैवान भी महान है
हम ऐसे देश के वारिस नहीं हैं
जहाँ न्याय के मुँह पर
अन्याय का ताला है
जहाँ इंसानियत की जगह
हिंसा का बोलबाला है
और हर कुर्सी पर
कुटिल पैसेवाला है
हम ऐसे देश के वारिस नहीं हैं
जहाँ भेड़ियों के सिर पर ही
सदियों से ताज है
जहाँ तानाशाही शासन का
असली अंदाज़ है
और बस कहने को
जनता का राज है
हम ऐसे देश के वारिस नहीं हैं
रचनाकाल : 2001