हमारा कालेज का बचुआ / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
जब से एफ. ए. फेल हुआ,
हमारा कालेज का बचुआ l
नाक दाबकर सम्पुट साधै,
महादेवजी को आराधै,
भंग छानकर रोज़ रात को
खाता मालपुआ l
वाल्मीकि को बाबा मानै,
नाना व्यासदेव को जानै,
चाचा महिषासुर को, दुर्गा
जी को सगी बुआ l
हिन्दी का लिक्खाड़ बड़ा वह,
जब देखो तब अड़ा पड़ा वह,
छायावाद रहस्यवाद के
भावों का बटुआ l
धीरे-धीरे रगड़-रगड़ कर
श्रीगणेश से झगड़-झगड़ कर,
नत्थाराम बन गया है अब
पहले का नथुआ l
हमारे कालेज का बचुआ l