हमारा ज़िन्दगी से जब भी नाता टूट जाता है / रविकांत अनमोल
हमारा ज़िन्दगी से जब भी नाता टूट जाता है
न जाने क्यों तुम्हारा रूठ जाना याद आता है
चराग़ों ने अमावस के अंधेरों को मिटा डाला
फ़लक पर इक नया सूरज सहर के गीत गाता है
कहाँ आते हैं वापस जा के ये झोंके हवाओं के
जो लम्हा बीत जाता है वो लम्हा बीत जाता है
महब्बत-सा कोई जज़्बा मचलता है मिरे दिल में
इबादत की तरह लब पर किसी का नाम आता है
जो होना था हुआ, अफ़सोस करते हो कहो क्यूँ तुम
कभी तक़दीर का लिख्खा भी कोई रोक पाता है
किसी दिन छूट जाती है महब्बत भी अदावत भी
ये फन्ने-गोशागीरी भी किसी दिन काम आता है
महब्बत है कि जितना भी मिटाओ कम नहीं होती
ये दिल है जो कि जब भी टूटता है गीत गाता है
धुंधलका है सबा है सुरमई सी लौ का है आलम
कोई पंछी किसी डाली पे बैठा चहचहाता है