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हमारा मन / आशुतोष सिंह 'साक्षी'

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मानवीय संवेदनाओं से अछूता हमारा मन।
किसी के कष्ट को देखकर अब,
है क्यों नहीं कचोटता हमारा मन॥

रक्त नहीं अब पानी हमारी नसों में दौड़ता है,
सिक्कों के बोझ से है दबा हुआ हमारा मन॥

सही-ग़लत की परवाह अब किसे है
जब ग़लत करने की गवाही देता हमारा मन॥

अपनी रक्षा के लिए हम कुत्तों को रखते हैं,
है क्यों नहीं वफ़ादार अब हमारा मन॥

क्यों इतनी हाय-हाय जब जाना है खाली हाथ,
फिर भी दूसरों का हक़ छीनना क्यों चाहता हमारा मन॥