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हमारा राम / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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ताकते मुँह रहे तुम्हारा राम!
पर न तुमने हमें उबारा राम!
हम थके, तुम पुकार सुन न सके,
कब न हमने तुम्हें पुकारा राम!
मन गया हार बेसहारे हो,
पर न तुमने दिया सहारा राम!
सच है यह, हम सुधार नहीं पाए,
क्यों नहीं तुमने ही सुधारा राम!
आँख से हम उतर गये, तो क्या,
तुमने जी से है क्यों उतारा राम?
हाथ तुमने किया नहीं ऊँचा,
हाथ हमने न कब पसारा राम?
किस तरह काम तब सँवर पाते,
जब कि तुमने नहीं सँवारा राम?
क्या रहा, पत बची-खुची न रही,
अब तो सब कुछ सरग सिधारा राम!
देख बेचारपन हमारा यह,
सच कहो, तुमने क्या विचारा राम!
तुम सुनोगे न, तो कहें किससे?
दूसरा कौन है, हमारा राम!