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हमारी क़ौम का इतिहास तो पुराना था / विनोद तिवारी
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हमारी क़ौम का इतिहास तो पुराना था
ये वो मुक़ाम नहीं है जहाँ पे आना था
भटकते रह गए हम तो शहर पनाहों में
हमें तो दूर के उस गाँव तलक जाना था
वो टूटे नीड़ के तिनके बटोरते बैठे
जिन्हें तो स्वर्ग को साकार कर दिखाना था
यही ग़लत हुआ कि भीड़ शोर बनके उठी
सुहाना गीत कोई प्यार भरा गाना था
नदी की धार को हम ही न बल से बाँध सके
दोष बरसात को देना तो इक बहाना था
इसी पड़ाव पे रुकना पड़ेगा अब दिन भर
थके हुए हैं जिन्हें रास्ता दिखाना था
उठाए फिरते रहे सर पे आसमाँ हम लोग
वो बोझ बढ़ता गया जो हमें उठाना था