भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारी ज़िंदगी में हर क़दम तूफ़ान आये हैं / देवेश दीक्षित 'देव'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारी ज़िंदगी में हर क़दम तूफ़ान आये हैं
चले हैं जिस तरफ़ सब रास्ते वीरान आये हैं

न पूछो मुफ़लिसी के दौर में कैसे गुज़ारे दिन
हुए फाँके अगर घर में तभी मेहमान आये हैं

रिवायत है ज़माने की बनाईं कोठियां जिसने
बुढ़ापे के समय हिस्से महज़ दालान आये हैं

बताएं हाल क्या तुमको सफ़र-ए-ज़िन्दगानी का
कभी पतवार छूटी है, कभी तूफ़ान आये हैं

चलो अब फेंक दो पत्थर,गुनाहों से करो तौबा
ख़बर ये भी नहीं तुमको कि अब रमज़ान आये हैं