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हमारी जान बसती है वतन के इन तरानों में / रंजीता सिंह फ़लक
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हमारी जान बसती है वतन के इन तरानों में ।
जिन्हे लिक्खा गया है हिन्द की हर जुबानों में ।
हमारी हस्ती ऐसी है, मिटा सकता नहीं कोई,
हमारा नाम आता है शहीदों के घरानों में ।
सुना करते हैं हम ख़ुद को, पढ़ा करते हैं हम खुद को
कभी कीर्तन-अजानों में, कभी गीता-कुरानों में ।
ज़माना सुन रहा है शौके-नाजो-फ़क्र से हमको
हमारी शोहरतों के चरचे हैं अब आसमानों में ।
वतन के वास्ते जो मिट गए बेखौफ़ होकर के
है उनका नाम रोशन अब शहादत के फ़सानों में ।
हमारे हौसले से है पलट जाता हवा का रुख़,
कोई क्या आजमाएगा हमें अब इम्तिहानों में ।
हमें लहरों को मुट्ठी में जकड़ना खूब आता है
हमें देखा है दुनिया ने समन्दर के उफ़ानों में ।