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हमारी पीडाएं बिक गई है / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
पीड़ाओं से क्रीड़ाओं को ही
जिन्होंने बना लिया है शगल
उन्हें मत कोसो
वे नहीं समझेंगे
उन्हें अगर भनक भी लग गई
हमारी पीड़ा की
वे होंगे हमारे बीच
दुश्मन देश की खुफ़िया एजेंसी के
एजेण्टों की मानिंद
और ले जाएंगे चुराकर हमारी पीड़ाएं
भुनाएंगे उन्हें राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में
हमें पता भी नहीं चलता
हमारी पीड़ाएं बिक गई है
न जाने कहां-कहां..
किस-किस की
कितनी रोटियां
सिक गई है