हमारी बच्चियां / संजय शेफर्ड
वह अब बच्ची नहीं रही
बड़ी हो रही है
और उसे खुद भी विश्वास है
एक दिन बड़ी हो जायगी
पूरी तरह
उसके हाथों में उग आएंगे
कुछ पैने नाखून
वह उन शिकारियों का
शिकार करेगी जो
दूसरों का शिकार करते हैं
बड़े प्यार से
उन्हें सिखाएगी प्रेम के
कुछ बेहद ही गूढ़ रहस्य
वह उन्हें बताएगी
एक स्त्री में गहरे तक होता है
मां, बहन बेटी होने का अंश
तुम्हें अगर प्रेम चाहिए
गहरे अर्थ में प्रेम
या फिर सार्थकता
आलौकिक जीवन की
तुम्हें भी प्रेम करना चाहिए
दुनिया की सारी प्रेमिकाओं
दुनिया की सारी लड़कियों से
बिल्कुल निच्छल
बिल्कुल स्वच्छ
उन बच्चियों की तरह
जो बड़ी होना सीख रही हैं
उसी एक मां, बहन बेटी के
सूक्ष्म से अंश को
खुद में महसूसते हुए
खुद में रोपते हुए
खुदको बीज से वृक्ष के रूप में
पैदा होते, बड़ा होते देखते हुए
सच मानों
तुम बाप बन जाओगे
और वह लड़कियां भी
इतनी छोटी कहां रहीं
जिसके साथ
तुम आंख-मिचौली खेलते थे !