भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी / संजू शब्दिता
Kavita Kosh से
हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी
गुलों की बात छिड़ी और उनको ख़ार लगी
बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर
जहां थे ज़ख्म वहीं चोट बार-बार लगी
कदम कदम पे हिदायत मिली सफ़र में हमें
कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी
नहीं थी क़द्र कभी मेरी हसरतों की उसे
ये और बात कि अब वो भी बेक़रार लगी
मदद का हाथ नहीं एक भी बढ़ा था मगर
अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी