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हमारी बात का तुम उम्र भर कहा रखना / अमरेन्द्र

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हमारी बात का तुम उम्र भर कहा रखना
निभे न दोस्ती तो दुश्मनी को क्या करना

भले ही पीठ की आँखों को तुम खुला रखना
हजार बातें वो दुख की मगर भुला रखना

मेरी तो इतनी-सी कोशिश है इब्तिदा रखना
उसी जमीन पे तुमको है इन्तिहा रखना

अंधेरा उम्र के जंगल का आनेवाला है
हसीन यादों के दीये को अब जला रखना

मिलो जरूर मगर इसका भी ख्याल रहे
ये दिल तो दिल ही है, थोड़ा-सा फासला रखना

अगर हो आँखों पे गिरती हुई कोई बिजली
कठिन हैµख्वाबों में अपने को मुब्तिला रखना

ये शहर है, तुम्हारा गाँव नहीं है अमरेन्द्र
दिलों की बातों को मत ऐसे जा-ब-जा रखना