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हमारी रूह को बेघर किया तुमने / प्रणव मिश्र 'तेजस'
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हमारी रूह को बेघर किया तुमने।
मुझे इंसान से पत्थर किया तुमने।
कोई भी अब हमारे दर नहीं आता।
हमारे घर का ये मंजर किया तुमने।
मैं दरिया था मेरी औक़ात इतनी थी।
अबस तन्हा सा इक सागर किया तुमने।
मैं खुद को जा-ब-जा कितना तलाशूंगा।
मुझे जब शहर में दर-दर किया तुमने।