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हमारी साँसे मिली हैं गिन के / अहसन यूसुफ़ ज़ई
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हमारी साँसे मिली हैं गिन के
न जाने कितने बजे हैं दिन के
तुम अपनी आँखों का ध्यान रखना
हवा में उड़ने लगे हैं तिनके
दिए रऊनत से जल रहे थे
हवा ने पूछे मिज़ाज उन के
वो रात आँखों में काटते हैं
गुलाब ज़ख़्मी हुए हैं जिन के
गिरी है आग़ोश-ए-राएगाँ में
तुम्हारे हाथों से रात छिन के