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हमारे ख़ाली सर किसी तरह के घोंसले नहीं / नीलोत्पल

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हमारे ख़ाली सर किसी तरह के घोंसले नहीं

मैं तड़फता हूं जब मछलियां मेरे बगल में
सांसे रोके पड़ी हैं शांत
और उन्हें नहीं जगा पाता

मैं नदी, सागर को नहीं देखता
वे अब भी झरे पत्तों और उनमें विसर्जित अस्थियों को लेकर
चलती हैं असंभव यात्रा की ओर

मैं नहीं पूछता उनसे
आख़िरकार
ये हद हमारी नहीं
हम जिस तरह से हमले करते हैं
और धुंआ छोड़ते हैं
वह बचा रह जाता है बाक़ी के कोटरों में
ज़िरह और अपील से पहले

फिर कुछ नहीं
वह शुरूआत जो हमने जड़ों से की थी
नहीं मिलती किसी के भीतर
सब ओर से
पंछी हमें लांघ जाते हैं
ठहरते नहीं

हमारे ख़ाली सर
किसी तरह के घोंसले नहीं बनते

कोई नहीं पूछता
मछलियों और पंछियों के बारे में

मैं हताश हूं
हमारे बीच जगह ख़ाली नहीं

जबकि पहाड़ के सबसे ऊपरी हिस्से पर
पेड़ आवाज़ लगाता है
और सब कुछ भर जाता है
जीवन के ढंग में